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दैनिक जागरण में 1 अगस्त 2014 को श्री राजनाथ सिंह सूर्य जी ने अपने लेख ‘ख़तरनाक मानसिकता’ के द्वारा अत्यन्त संवेदनशील एवं गंभीर विषय की ओर ध्यान आकर्षित किया है। पूर्वजों की मान्यता के परामर्श का उद्धरण लेते हुए बताया की “पहले सोचो ,फिर समझो और तब आचरण करो”। अतः एक सभ्य समाज के निर्माण में ‘विवेक’ एक महत्वपूर्ण करक होता है। विवेक शिक्छा एवं संस्कार द्वारा प्राप्त विद्वता से उत्पन्न होता है। विवेक ही चरित्र में नैतिकता की परिपक्वता का विकास करता है। ये गुण ही मनुष्य को समाज में विश्वास पात्र बनाते है। देश ही नहीं अपितु विश्व के तमाम पूज्यनीय महापुरषों के चरित्र के ये प्रमुख एवं सबसे ठोस करक रहे है।
वर्तमान समय में हम केवल “हम” में जकड कर रह गए है। स्वार्थ का ऐसा चश्मा हमने पहन लिया है, जिससे हमें अपने स्वार्थ के अलावा कुछ भी नहीं दिखता, न ही देश और न ही समाज। इस ‘हम’ ने हमें इतना प्रभावित कर रखा है, की हम अपने आप को हर समय असुरक्चित महसूस करते है। अब इस ‘हम ‘ और असुरक्चा से ही हमारे सारे क्रिया कलाप निष्पादित होते है। इन क्रिया कलापों से होने वाला लाभ केवल और केवल हमें ही मिले यही हमारी मूल धरना रहती है। किन्तु इन क्रिया कलापो के क्या कुछ दुष्परिणाम भी हो सकते है,इन दुष्परिणामों का हमारे देश और समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा इन विचारो से हम सर्वथा बेखबर ही रहना चाहते है।
महाभारत के युद्ध में युधिस्ठिर ने द्रोणाचार्य से कहा था “अस्वस्थामा मारो ,नरो या कुंजरो”, इस अर्धसत्य को सुन कर द्रोणाचार्य ने शास्त्रों का त्याग कर दिया और मृत्यु को प्राप्त हुए। आज मीडिआ भी इस प्रकार के प्रकरणों से अपने ‘हम ‘(टी आर पी )का श्रजन करने में विश्वास करता है। यद्यपि मीडिआ को हम उतना ही महत्व देते है, जैसा की युधिस्ठिर का उनके काल में था। महाभारत के युद्ध में धर्म के विजय के निमित यह कूटनीत कृष्ण ने प्रयोग में ली थी, किन्तु आज मीडिआ के ‘अर्धसत्य ‘से समाज और देश की विचारधारा प्रभावित होती है,जिसके दुष्परिणाम समाज में तमाम विकृत्यों को जन्म दे रहा है। मीडिआ इन विकृतियों से भी अपने लिए पर्याप्त विषय वस्तु निकाल लेती है।
श्री राजनाथ सिंह जी ने अपने लेख में तीन उदाहरण प्रस्तुत किये है। पहला – तेलंगाना के ब्रांडएम्बेस्डर के रूप में सानिया मिर्जा के नाम पर, भ ज प के लक्छ्मण एवं कांग्रेस के हनुमंत राव द्वारा आलोचना के बाद भा ज प ने लक्छमण के ब्यान को नकार दिया, किन्तु कांग्रेस ने राव पर चुपी साध ली। इस के बाद भी मीडिआ ने लक्छ्मण को ही चर्चा का मुख्या आधार बना रखा। ऐसा क्यों ? दूसरा प्रकरण महाराष्ट्र के गोमांतक पार्टी के सदस्य ने कहा ‘ नरेंद्र मोदी भारत को हिंदू रास्त्र बना देंगे। उपमुख्य मंत्री फ्रांसिस डिसूज़ा ने इस पर स्पस्ट किया – हिंदुस्तान तो हिन्दू रास्त्र है ही, इस में नया क्या है ? मीडिआ ने इसे भी काट छाट कर अपनी विषय वस्तु बना लिया। ऐसा क्यों किया जा रहा है। तीसरा प्रकरण – शिवसेना के एक सदस्य ने भोजन की गुणवत्ता को ले कर आक्रोशित हो एक कर्मचारी के मुख में रोटी डाल दी,सारे प्रकरण के समाप्त हो जाने के बाद ज्ञात हुआ वह कर्मचारी रोजे से था। मीडिआ ने इस प्रकरण के मूल कारण से दीगर, एक नए रंग में पेश कर दिया।
टी आर पी से अधिक हमारी जिम्मेदारी समाज के प्रति बनती है, हमारा सारा प्रयास रहे की तमाम विषयों को दर किनार कर, समाज में किसी भी प्रकार का कोई भी बिखराव न आने पावे। हमारी एक भूल की चिंगारी समाज को ज्वालामुखी में धकेल सकती है। हमें अपनी व्योसाईक आवश्यकता से अधिक अपने सामाजिक उत्तरदाईत्व के प्रति गंभीर होना पड़ेगा।
आज के युग में मीडिआ की व्यापकता असीमित है। जनमानस में किसी भी विषय पर जनमत बनाने का अध्भुत कार्य मीडिआ द्वारा किया जा सकता है। इस हाल में मीडिआ को “भस्मासुर ” बनने से अपने आप को बचना चाहिए, यही देश और समाज के हित में होगा। आज हमारे पास कोई ऐसा सूत्र नहीं है, जो समाज में एक विवेकशील नैतिक चरित्र निर्माण का निर्भीकता पूर्वक स्रीजन कर सकने का सामर्थ रखता हो। अतः मीडिआ को अपने समाज के प्रति जिम्मदारी को गंभीरता पूर्वक लेना ही चाहिए,इस में हुई लापरवाही देश समाज के लिए किसी भयंकर संक्रामक रोग का कारण बन सकती है, एक लाइलाज रोग। अतः युधिस्ठर की विश्वश्नीयता को कायम करना ही होगा, यह स्पस्ट करना ही होगा की “अस्वस्थामा तो मर गया ,किन्तु वह नर नहीं पशु था।”
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