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निराशा में आशा

vichar
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आदरणीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी अपने नौव साल के शासन काल में मीडिया
से केवल तीन बार मुखातिब हुए । इस बार भी उनके पास कुछ भी कहने और सुनने के
लिए कुछ भी संतोष जनक नहीं था, जिससे जनता का थोडा भी विश्वास उनके पक्छ में आ
पाता । अपनी हताशा छुपाने के लिए , वर्त्तमान से ऊबे हुए , इतिहास पर आस
लगाने के सिवा और कुछ नहीं कह सके। जनता की निराशा और भी बड़ गयी।
सोनिया जी के पास समस्त शक्तियाँ है, पर कोइ जिम्मेदारी नहीं ,मनमोहन जी के
पास जिम्मेदारी है, अधिकार नहीं। फिर भी मनमोहन जी ने वफादारी की एक अदभुत
परिभाषा रची। चाहे जैसी भी परिस्थित देश के सामने आई वे मौन ही रहे। कभी भी
किसी भी दशा में उनके जमीर ने उन्हें अपनी वफादारी से उन्हें विचलित नहीं होने
दिया। हमेशा यही ब्यक्त करते रहे जैसे सब ठीक – ठाक चल रहा है ,और कुछ भी
असमान्य हुआ ही नहीं।
भ्रस्टाचार सामाजिक अस्तर पर अपनी सारी सीमाऐ लांघ चूका है ,नेताओ
और कार्यपालकों में राष्ट्रीय भावनाओ का सर्वथा आभाव स्पष्ट दिखने लगा है
,नैतिकता शब्द का बोध समाप्त प्राय हो चूका है ,संसदीय शिस्टाचार वा भाषा का
अब कोइ मूल्य नहीं रहा। सत्ता दल अपनी नीतियों पर किसी भी प्रकार की कोइ
टिप्प्णी या बहस बर्दास्त करना नहीं चाहती। विपक्छ भी अपनी गरिमा बचाने के
नये नए तरीके खोजता दिख रहा है। समाज में उठे परिवर्तन के बेयार को सभी
परम्परा वादी दबा देने की जी जान से प्रयास में लगे है।
किसी ने कहा – कि राहुल जी एक राजनैतिक दायत्व बन गए है,और कांग्रेस को इस से
उबरने के लिए प्रियंका जी के सहारे की जरूरत महसूस हो रही है।
देश मजबूर है – उसके सामने कोइ विकल्प नहीं है। छेत्री पार्टियो के
मुख्यामंत्री लोकप्रियता मिलते ही राज्य को अपनी निजी सम्पत्ति के रूप में
इस्तमाल करने लग जाते है।
दिल्ली विधानसभा में “आप ” की आमद को जनता एक परिवर्तन के रूप में देख रही है
,किन्तु उन्हें अपने आंदोलन को शासन के क्रियात्मक कार्य योजना में अभी बदल कर
दिखाना बाकी है।
आज सर्वथा देश में राजनेतिक प्रतिभा का आभाव सा दिख रहा है।
हमें आज ऐसा नेतृत्व चाहिए जिस के पास देश को इस नाजुक स्थित से बहार निकाल कर
विश्व के समक्छ अपने पुरषार्थ को सिद्ध करने की गम्भीर सोच हो ,और इस सोच को
कार्य रूप में सिद्ध करने का सामर्थ भी हो।
इस कसौटी पर इस समय सारे भारतवर्ष की नहीं बल्की विश्व की निगाह में नरेंद्र
मोदी जी ही एक आश के रूप में दिख रहे है। 15 सालों से जांचा परखा और सफल
व्यक्तित्व। जो तमाम गतिरोधों को सफलता पूर्वक पार करते हुए अपनी सच्चाई की
तमाम परिक्छाओ में उत्तीर्ण होता आप की आशाओ पर आज तक का सब से खरा सोना साबित
होता रहा है। इन परिस्थितयो में हमारा दायत्व बन जाता है कि हम नरेंद्र मोदी
जी को एक बार अवशर देकर परखे। दिग्भ्रमित हो कही इस अवशर को हात से न निकल
जाने दे। ध्यान रहे।

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